Wednesday 18 April 2018

इसी जनम मैं मिल रहा है क्य

हर मनुष्य  के मन मैं सेवा भाव अवश्य उत्पन्न होता है  वह जब अपनी सेवा कर कर कर  ऊब जाता है  या  जब  ईश्वर  से अपनी  सेवा  और करवानी होती है तो  दान  पुण्य  मैं  लग  जाता  है कभी कभी विवशता भी होती है  अपना  शनीचर उतारने  के लिए  दान कर वह शनीचर  दुसरे के सर चढ़ाना   है  इसके लिए मंदिर या कोई भिखारी ढूँढा  जाता है  पितर शांत करने हैं भूखों को भोजन अन्न वस्त्र दान करने होते हैं ऐसी अब  मैं बढ़ते आधारहीन  माता पिता भी है पहले बच्चे अनाथ होते थे अब माँ बाप अनाथ होते हैं ऐसे ही दान दाताओं से चल रहे  वृद्धाश्रम मे  मैं   कभी  श्रम कर आती हूँ  धार्मिक पुस्तकें चाय चीनी  साबुन  आदि छोटी जरूरी वस्तुएं दे आती हूँ  जब कुछ की आँखों   दान की वस्तुएं लेने मैं नमी छा जाती है क्योंकि कभी उन्होंने भी ददन किये थे क्या वे ही दान उन्हें वापस मिल रहे हैं 

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