Friday 2 September 2016

सबको जीने का अधिकार होना चाहिए

क्या मानव होना सैक्स पर आधारित है त्र भारतीय संस्कृति में नर नारी किन्नर देव दनुज आदि मानवीय  आधार पर  विभाजित किये गये हैं या कर्म के आधार पर लेकिन किस आधार पर हम किन्नर या समलैंगिक आदि को समाज से बहिष्कृत करते हैं । उनमें मानवीयता नहीं है उन्हें छूत की बीमारी है उन्होंने दुष्कर्म किया है तब उन्हें बहिष्कृत करें हम निम्नस्तर तक गिरने वालों को आॅ।खें पर बिठाकर रखते हैं गरीबों के हक को खाने वालों को माननीय धोषित करते हैं और जो ईश्वरीय संरचना में कमी या कुछ व्यक्तिगत आदत वाले को बहिष्कृत करते हैं 
क्या सैक्स समाज का आधार है क्या किन्नर मानसिक विकलांग हैं जो समाज में रहने योग्य नहीं हैं ?तब दिन रात अखबारों में बलात्कार के केस आते हैं उन्हें हम सर्वोंच्च पद देदें और उनके पाॅंव पूजें कि आप जैसा कोई नहीं 
किन्नर समाज को क्यों हम केवल नाचने गाने के लिये मजबूर करते हैं उन्हें शिक्षा आदि देकर काम करने और समाज में उठने बैठने से रोका जाता है ।तब क्यों नहीं सभी कुंवारे साधु सन्यासी विधुर विधवा आदि को बहिष्कृत कर दिया जाता।किसी भी प्रकार के फार्म में सैक्स मेल या फीमेल के स्थान पर लिखा जाना चाहिये ‘क्या आप सैक्स करने में सक्षम है ं?’
अगर कोई भी मनुष्य मानसिक रूप् से ठीक है तो कोई भी वर्ण वर्ग जाति का हो उसे सामान्य जीवन जीने का अधिकार है आदर पूर्वक जीने का अधिकार 

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (04-09-2016) को "आदमी बना रहा है मिसाइल" (चर्चा अंक-2455) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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