Monday 8 April 2013

modi vs gandhi

मैं एक आम  भारतीय हूँ  जो भारत मैं रहकर  नेता गिरी से दूर आम  जीवन जी रही हूँ जिसका  न दिल्ली से कोई नाता है गुजरात से हाँ भारत से हिंदुस्तान से  नाता है .मैं किसी पार्टी से संबध नहीं हूँ  न किसी व्यक्ति विशेष  की  प्रशंशा  अनुशंषा  या वंचना  करती हूँ हाँ जो बात अखरती है वाही बात कहना चाहती हूँ  जब पार्टी से  सम्बंधित  नेता दूसरी पार्टी  के दोष निकलना चाहता है तो बचकानी बातें सुनकर लगता है  ये हैं जिन्हें हमने सर पर चढ़ा  रखा  है जो केवल पार्टी या ब्यक्ति देख रहें हैं देश से इन्हें कोई मतलब नहीं है .
आजकल मोदी बनाम  राहुल पर जोर शोर से बहस चल रही है .जहाँ तक मैं समझती हूँ यह स्पष्ट है कि  किसके प्रति नम्र  रूख अपना कर उसे बढ़ा  चढ़ा कर मसीहा बनाया जा रहा है की जैसे व्ही देश का उद्धार  कर के रातो रात बदल कर रख देगा  परन्तु मैं नरेन्द्र मोदी और राहुल गाँधी के भाषणों की तुलना  क्या दोनों की तुलना करने के पक्ष मैं ही नहीं हूँ . मोदी का एक  सीमित दायरा है एक प्रदेश गुजरात जिसके लिए उन्होंने काम  करके दिखाया  है  अन्य उसे नकारने मैं लगे रहते है मैं  जानना चाहती क्याअन्य प्रदेश अधिक तरक्की कर रहे हैं क्या कर के दिखा  रहें हैं  ठीक है मोदी ने कुछ नहीं किया  सब अपने आप  हो गया पर अन्य प्रदेश क्यों नहीं बढ़ रहे क्यों दिल्ली अपराध मैं नाम कमा रही हैं यदि सभी प्रदेश इतना भी  कर दिखाएँ तो  शायद देश वासियों का बहुत हित हो जायेगा .एक व्यक्ति अपने दम पर है तो दुसरे के पीछे पूरी सरकार  है  पूरा  प्रशासन  है इसलिए  कोई मुकाबला ही नहीं है  अगर गाँधी का लेबल न हो तो  राहुल क्या है  क्या खाली  भाषण
दे देना वह भी चाँद कॉर्पोरेट  व्यक्तियों के लिए क्योंकि कम से कम जिस भाषा मैं राहुल ने भाषण दिया वह आम  जनता के लिए नहीं हो सकता क्यों की जो व्यक्ति देश की भाषा मैं बात नहीं कर सकता  वह आम  जनता के दर्द  को नहीं समझ सकता न समझा सकता है कॉर्पोरेट जगत के लोगो ने उसकी तारीफ की  अधिकांश कॉर्पोरेट जगत के लोग एन आर आइ  का ठप्पा लिए घूम रहे हैं  वे अधिक समय विदेशों मैं रहते है विदेशी भाषा बोलते हैं उन्हें अपने विकास से मतलब है  जनता की समस्याओं  से कोई लेना देना नहीं है चार्टर प्लेन मैं घूमने वाले जनता रेल मैं जाकर देख लें जनता कहाँ है  भूख क्या होती है नहीं जानते की  उनके हित मैं था भाषण इसलिए उन्हें बुत पसंद आया .मैं दावे से कह सकती हूँ शायद अच्छे  अच्छे  अंग्रेजी  जानने वाले ( मैं बोलने वल्र नहीं कह रहीं हूँ ) उस भाषण को  नहीं समझ पाए होंगे समझने के लिए पूरे आंख नाक  कान  खुले रख कर भी दूसरे दिन के अखबार का सहारा लेना पड़ा होगा हाँ यह स्वीकारने के लिए उन मैं हिम्मत नहीं होगी नक् का सवाल है जो चनद  हैं उनकी समझ मैं क्या आया  होगा  देश की जनता को अपनी बात समझाने के लिए जन भाषा का प्रयोग करना होगा भारतीय होना पड़ेगा .तभी भारतियों को समझाया जा सकता है .

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