Friday 29 March 2024

Pustak prem 3

 छटवीं शताब्दीके मनीषी और फारस के वजीर आज़म अब्दुल कासिम इस्माइल और 1,17,000 ग्रन्थों से भरे उनके पुस्तकालय का किस्सा बड़ा मनोहर हे। इतिहासकार बजाजे हैं कि यात्रा भ्रमण की बात ही छोड़ दें, वह युद्धकाल में भी अपनी प्रिय पुस्तकें साथ रखते,जहां जाते उनका पुसत्कालय चार सौ ऊंटों पर लद कर उनके साथ जाता और ऊट थे कि उन्हें वर्ण क्रम से  बंध कर चलने का प्रशिक्षण दिया जाता था। इस प्रकार किताबी कारवां के साथ सफर कर रहे पुस्तकाध्यक्ष अपने स्वमी का इशारा पाते ही उनकी मनचाही पुस्तक निकाल कर पेश कर देते थे ।

पुस्तकों का जन्मदाता चीन है चीन में 868 में सर्वप्रथम पुस्तक प्रकाशित हुई थी। हीरक पुत्र नामक पुस्तक आज भी ब्रिटिश संग्रहालय में सुरक्षित है। पुस्तक प्रेमियों ने पुस्तको को तरह तरह से सजाया बनाया। बर्मा में संगमरमर की प्लेटों से तैयार की गई एक ऐसी पुस्तक हैे जिसका वजन 728 टन लंबाई एक मील 1.6। यह पुस्तक पाली भाषा में लिखी गई है। इसे संत यूनाखान्नी ने लिखा है। 

आस्ट्रेलिया में खुदाई के दौरान सैंकड़ो ग्रन्थों से संबंधित लाखों ईटंे जिन पर अक्षर खोद कर लिखा गया  मिली है। अर्थात ईटों की किताबें लिखने वाले भी क्या करें किसी न किसी पर तो लिखना ही था। भारत में तो भोजपत्रों पर लिखा जाता था। कागज था ही नही। आस्ट्रेलिया में खोद कर लिख दिया। पुरातत्ववेत्ताआंे के अनुसार यह संग्रह करीब साढे़ चार हजार वर्ष पुराना है। उŸारी श्री लंका में अनुराधापुर गॉंव मे ख्ुादाई के समय पुरातत्व वेत्ताओं को दो किलोग्राम सोने की आठ पत्तियॉं प्राप्त हुई है। संस्कृत भाषा में अंकित आठ पत्तियों की कीमत 15 लाख रूपये ऑकी गई है। अफगानिस्तान के एक अमीर व्यक्ति ने फारस के शहंशाह को एक पुस्तक भेंट दी थी जिसमें 169 मोती, 133 लाल व 111 हीरे जड़े हुए थे। दुनियॉ की सबसे नन्ही किताब जापान में प्रकाशित हुई है। बंद किये जाने पर इस किताब का आकार दियासलाई की सींक के समान हो जाता है खोले जाने पर इस किताब के दो पन्नों की लंबाई और चौड़ाई साढे़ चार मिली मीटर होती है। इस किताब का नाम हाब्कनिन हरूशु है । 


Tuesday 26 March 2024

पुस्तक प्रेम

 परन्तु कैसे ..........एक प्रश्न चिन्ह सबके चेहरे पर उभर आया। वह छात्र बोला, भारतीय ज्ञान का प्रचार पूरे विश्व में हो इसकी ज्योति विश्व में जगमगाये उससे कीमती तो हमारा जीवन नहीं है यह कहकर वह उठा और उफनती नदी की लहरों में कूद कर उत्ताल तंरगों में वह लोप हो गया। और उसका अनुसरण उसके मित्र भी करने लगे। अथाह जल में कई शरीर विलुप्त हो गये। पता नहीं कुछ नदी पार कर पाये या  नहीं इतिहास उनके कूदने तक का गवाह है। हवेनसांग सिहर उठा उसके नेत्रों से उन अमर बलिदानियों के लिये झर झर ऑंसू बह उठे। 

भारतीय संस्कृति का सर्वोच्च उदाहरण उसके सामने था। वह सकुशल उन ग्रन्थों के साथ अपने देश पहुंच गया। लेकिन एक अमिट लकीर उसके जीवन पटल पर खिंच गई। पुस्तक पढ़ना लिखना यही मानव होने की विशिष्टता है। पुस्तकों से मानव को एक लगाव होता है। पेट की ख्ुाराक यदि रोटी है तो दिमाग की खुराक पुस्तक है। लेखक का लिखने के लिये मस्तिक को केन्द्रित करना आवश्यक है। उसे केन्द्रित करने के लिये अलग अलग तरीके अपनाये जाते है। आगे बढ़ने से पहले मैं स्पष्ट कर दूॅ। यहॉं उन पुस्तकों का उल्लेख है जो पुस्तक रूप में अन्य सामान्य पुस्तकों से भिन्न हैं। जो असाधारण है। इस लेख का संबंध उन पुस्तकों से कतई नहीं है जो अपने विषय के लिये सरकार द्धारा जब्त की गईं या सबसे अधिक बिक्री का इतिहास बनाया। 

शेष

Sunday 24 March 2024

pustsk prem

 पुस्तक प्रेम

प्राचीन समय में भारत अपनी सभ्यता संस्कृति एवम् समृद्धि के कारण पूरे विश्व में विख्यात था। भारत के विषय मंे एक कौतूहल जिज्ञासा हर उस व्यक्ति के मन में रहती थी जिसे जरा भी मन में सत्य व ज्ञान के प्रति ललक रहती थी। सम्राट हर्षवर्धन के समय भारतीय ज्ञान की खोज मे आये हवेनसांग इतिहास में बहुत प्रसिद्ध हैं। 1631 ई0 में होनान फू से अनेक बाधाओं को पार करके हवेन सांग भारत आया। युवा हवेनसांग भारत की धर्म संस्कृति से बहुत प्रभावित था, उसी की खोज में वह भारत आया था। यहॉं उसने स्थान स्थान पर ज्ञान पिपासा को शांत किया। दो वर्ष बिहार में रहा और एक वर्ष नालंदा विश्वविद्यालय में उसने ज्ञान प्राप्त किया। कई वर्ष भारत में व्यतीत करने के बाद उसने भारतीय साहित्य संस्कृति का अन्य देशांे में प्रचार प्रसार करने के लिये वापस स्वदेश जाने का निश्चय किया। अपने साथ उसने नालंदा विश्ववि़द्यालय के छात्र व धर्म ग्रन्थ आदि लिये और वापसी की यात्रा प्रारम्भ हो गई। 

इन लोगों को जल थल सभी मार्गो से यात्रा करनी थी। सिंधु नदी के पास तक यह यात्री दल आराम से पहूॅंच गया, आगे की यात्रा के लिये तब एक नाव में बैठ कर रवाना हुए। आधी नदी पार किया ही था कि घनघोर घटाऐं और तेज हवाऐं चलने लगी। नाव डगमग हिचकोने खाने लगी, लग रहा था अब डूबी कि तब डूबी। 

एक तरफ तो सबकी जान खतरें में थी ही पर सारे ग्रन्थ भी पानी में डूब जायेंगे यह चिंता अधिक थी। क्या किया जायें। इतने वर्षो की खोज इस प्रकार डूब जायेगी। हवेनसांग निराश हो उठा। सभी एक छात्र बोला यदि नाव में भार कम हो जाये ंतो शायद ग्रन्थों को नष्ट होने से बचाया जा सके। नाव हल्की हो जायेगी उलटने का खतरा कम हो जायेगा। 

शेष

Saturday 17 February 2024

chunav

 चुनाव की तैयारियों के साथ ही सत्तारूढ र्पाअी की कमिया निकालना प्रारम्भ हो जाता है। बिषेश

रूप से ऐसे मुद्दे उठाये जाते हैं जो जनता से जुड़े होते हैं लेकिन उन मुछ्ों को उठाना और वायदा करना एक बात है उनको पूरा करना बिलकुल अलग है ।

सबसे पहले सवाल नौकरियों का उठता है । युवाओं की बेकारी का उठता है और कहा जाता है सरकार नौकरी दे ।हर व्यक्ति सरकारी नौकरी लेना चाहता है कारण पैसा अंत तक मिलता रहता हे ,दूसरी सबसे बड़ा कारण हैकाम नहीं करना पड़ेगा । सरकारी नौकरी का मतलब हरामखोरी होगया है । कितना भी भ्रश्टाचार मुक्त कहलें पर बिना लिये दिये तो मृत्यु सार्टीफिकेट भी नहीं बनता है । अब सरकारी नौकरी ऐसे ही तो मिल नहीं गई पूरा पैसा खर्च किया गया था उसे पाने के लिये तो वसूला तो जायेगा ही ।देष जाये गर्त में इसकी किसे चिंता है फिर दूसरी पार्टी कैसे खड़ी होगी वह कहेगी देष गर्त में जा रहा है विकास नहीं हो रहा है।क्योंकि सरकारी नौकर काम नहीं करना चाहते।


Thursday 14 December 2023

Niyam to niyam hain

 


नियम तो नियम है नियमों का क्या

नियम तो नियम है इनके लिये सोचना क्या ये तो हैं ही टूटने के लिये। बनते हैं टूटते हे बनते हैं टूटते हैं और नियम बनते हंै किस के लिये। उस से सम्बन्धित सभी कर्मचारी, पुलिस, अधिकारी सबकी पीढ़ियाँ तर जाती हैं। जब जेब ढीली पड़ जाती है तब नियम की याद आ जाती है कि चलो नियम ढीले पड़ गये हैं कसा जाय जेब भी टाइट चल रही है।

पाॅलिथिन बंद... हल्ला, होहल्ला गाय मरती है, नाले चोक होते हैं मिट्टी खराब होती है लेकिन मिट्टी खराब हो जाती है छोटे दुकानदारों की, ठेले वालों की एकदम से थैलियाँ जब्त, साथा ही फाइन। लाला चल अब कुछ दिन मौज कर अब अगली बार तुझ पर हाथ नहीं डालेंगे। और ठेले वाला धड़ल्ले से फिर थैलियाँ देता है सबकी जेब भी भर जाती है और पाॅलिथिन अभियान खत्म।

दूसरे विभाग का अभियान चालू होता है । जब जिस चैराहे पर याद आती है और उसमें भी देखते हैं ,कौन मरगिल्ला पिद्दी सा है। सूट बूट वाले या दबंग से शान से बिना हैलमेट चलते हैं और उसकी बगल का टूटा सा स्कूटर  चलने वाला पकड़ में आता है  जेब में पैसे नहीं हैं बेटा  घर जा बेटा पैसे  जा चाहे सिर फोड़ या टांग कटा।

नियम बना 10 बजे तक बैंडबाजा बरात का मोहल्लो के बरातघर बंद शोर से ट्रैफिक से जनता है परेशान हैरान जिसकी लाठी उसकी भैंस जो दबंग है 12 बजे तक शोर मचाये, बाजे बजाये, गोली दागे पटाखे चलाये बम फोड़े।

जनता के कान फूटे, बीमार मरे दिल के मरीज की धड़कन बंद हो तो क फर्क पड़ता है शादी तो एक दिन होनी है मुहल्ले के कान तो रोज फूटते है सुबह 4 बजे ढोल नगाड़े से शुरू हो जाता है। बाबुल की दुआएं अब चाहे बाबुल कितना ही सुखी संसार के लिये दुआ देगा पर मुहल्ले का मुहल्ला बददुआ देगा जैसे तूने हमारी नींद उड़ाई भगवान तुम्हारी नींद उड़ाई जैसे तुमने हमे उठाये रखा है भगवान तुम सबको उठाये। अब शादी में कियन तो है कि जब तक पूरे जोश से बासुरी धुन न गाई बजाई जाय शादी शादी न मानी जाती।


Saturday 9 December 2023

taiyari laghuktha

 


तैयारी

82 वर्षीय दादाजी के चारों ओर परिवार के लोग खड़े थे। दादी जी ने उनके कान के लौ देखे उदासी से बोली, बहू बस अब आखिरी समय आ गया है।

उनकी आँखों से मलमल आँसू गिरने लगे। बहू उन्हें सांत्वना देती उनकी पीठ पर हाथ रख लिया। डाॅक्टर ने भी मुआयना किया बेटा क्या देख रहा है उल्टी सांस चल रही है सुबकते दादी ने कहा। 

अम्मा डाॅक्टर साहब को अपना काम करने दो, बड़े बेटे ने रोका। सबकी आँखे घिरी हुई थी।

डाॅक्टर साहब ने फिर नया बनाया और पकड़ाते कहा, देखिये कहकर चले गये। पर बूढ़ी आँखों ने जमाना देखा था बहु से बोली, अब कुछ घंटो के मेहमान है देखो बहू ओढया बिछइया का और नाग पानी का देख लीजो सर्द है रजाई वगरेह सब निकलवा ले बड़े संदूके में गद्दे रखे हैं।

बड़ी बहू और छोटी बहू दोनों की आँख मिली इंतजाम के लिये उठ गई जरा घर भी ठीक करो छोटी आने जाने वाले आयेंगे पानी वगेरह का इंतजाम भी रखना पड़ेगा। अरे वो मेरे कमरे का गीजर खराब है एकदम नहाने वालो की लाइन लगेगी शामू जा बिजली वाले का बुला ला।

छोटी बहू कमरों की साफ सफाई में लग गई बड़ी बहू ने अपने बेटे की बहू से कहां बेटा अब दादाजी का कुछ ठीक नही है जरा सब तैयारी रखना सब आयेंगे जायेंगे।

पाते की बहू ने आईना देखा गाड़ी उठाई तुरंत तैयारी के लिये ब्यूटीपालेर चली गई फैशियल वगेरह करा लूँ। सोचकर।


news letter

 इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के दौरान जैसे.जैसे मुझे दुनिया के बारे में व्यापक जानकारी मिली और मैं अधिक विश्लेषणात्मक होता गया, मेरी आस्थाएं विकसित होती गईं। मेरे द्वारा धारण की गई मान्यताओं के संबंध में बहुत सारी संज्ञानात्मक असंगतियाँ उत्पन्न होने लगीं। लेकिन जैसे.जैसे मेरी मान्यताएँ विकसित होती गईं, मुझे धर्म में मूल्य फिर भी मिलता रहा। अंतर यह था कि मैंने धर्मों को एक विषय के रूप में नहीं देखना शुरू कर दिया था।

पूर्ण निश्चितता या ष्ईश्वर का वचनष्, लेकिन अर्थ और सत्य की कभी न खत्म होने वाली खोज से भी अधिक। इस तरह से देखने पर, यह स्पष्ट हो जाता है कि अधिकांश धर्म की व्याख्या शाब्दिक के बजाय रूपक के रूप में की जाती है। इससे बदले में  सभी धर्मों को एक.दूसरे के साथ विरोधाभासी देखे बिना, उनमें ज्ञान ढूंढना आसान हो जाता है। बल्कि, वे सभी एक साझा मानव अर्थ.निर्माण परियोजना का हिस्सा हैं जो एक प्रजाति के रूप में हमारे पूरे इतिहास में चल रही है। निःसंदेहए यह सब मेरे दिमाग में पूरी तरह से स्थापित होने में समय लगा।

हिंदू जीवन के चार चरणों में विश्वास करते हैं. ब्रह्मचर्य ;अनुशासनद्ध, गृहस्थ ;आनंदद्ध, वानप्रस्थ ;सीखनाद्ध, और संन्यास ;सेवानिवृत्तिद्ध। हालाँकि उस समय मैं इसके बारे में पूरी तरह से सचेत 


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नहीं था, यह तीसरे चरण, वानप्रस्थ की मेरी अपनी व्यक्तिगत खोज थी, जिसने मुझे एडवांस्ड लीडरशिप इनिशिएटिव ;एएलआईद्ध कार्यक्रम में हार्वर्ड में अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया।